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Tuesday 26 April 2011

ये बादल हमें सिखाते हैं

ये बादल हमें सिखाते हैं ...
दो बादल  हैं बौराए से 
टकरा टकराकर वो गरज़ते हैं 

कुछ  अमृत वो छुपाये थे 
जो बूंदे बन बरसते हैं 

बच्चे हैं कुछ  अलसाए से 
घर से वो अब   निकलते हैं 

अर्धनिद्रा में कुछ सोये  थे 
वो बादल  को धिक्कारते हैं 

धान को रोपे कुछ रोये थे 
वो   ईश -कृपा  स्वीकारते  है 

दो ध्रुव जब साथ  निभाते हैं 
तो जलने वाले जलते हैं 

विकास  रुपी वर्षा लाते हैं 
बस लड़ने से क्या होगा 

ये बादल हमें सिखाते हैं 
स्वार्थ करने  से क्या होगा 

वर्षा लाते हैं हम मिलकर 
सपने बुनने  से क्या होगा 

वर्षा लाते हैं हम मिलकर 
सपने बुनने  से क्या होगा 








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