टर टर करते हो हे मेढक
क्या वर्षा आने वाली है
दीवारों पर चिंटी की कतारे
क्या वर्षा आने वाली है
दुबक गए हो बिल में मूषकों
क्या वर्षा आने वाली है
सूरज बादल में ठनी हुई है
क्या वर्षा आने वाली है
बूढी नज़रों से वो बूढ़ा
अपने प्यारे खेत को देखता है
कैसे कटेगा ये साल
अपनी घरवाली से वो पूछता है
अभियंता बेटा है उसका
दूर प्रदेश में जा वो बसा
डाकिया आया है चिट्ठी लेकर
फिर आस में वो बूढ़ा हंसा
पढ़ा डाकिया ख़त को
उसमे बकाये का ज़िक्र था
बूढ़ा बूढी के आँखें नम थी
उनके अरमानो का ये हश्र था
न जाने वो कितने सालों से
बेटे की आहट को वो तरस गए
बेटा तो आया नहीं
पर बादल आकर गरज गए
बेटा तो आया नहीं
पर बादल आकर गरज गए
डाकिये ने उस बूढ़े के
कांपते हाथो से अखबार लिया
मॉनसून की भविष्यवानिया हैं
पढ़कर कुदरत को दोष दिया
फिर से कीचड़ से वो राहें
बेकार में भर जायेंगी
ये मॉनसून मेरे पत्र-वितरण में
बड़ी परेशानी लायेंगी
बूढ़े को एक आस जगी
ये भविष्यवाणी सच हो पाए
हमारे सूखे खेत में
फिर से हरियाली आ जाए
भविष्यवाणी है मॉनसून की
क्या वर्षा आने वाली है
ये सुन आई बिन व्याही बेटी
उसके मुख पर फिर से लाली है
No comments:
Post a Comment