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Tuesday 26 April 2011

चलो थाम लो उस बूढ़े का हाथ

चलो थाम लो उस बूढ़े का हाथ
चलो थाम लो  उस बूढ़े का  हाथ 
जो बैठा है निराशा के अंधकूप में 
सब कुछ झोंक चूका है 
जीवन के शाम और धुप में 

बढ़ो ,झिझको नहीं वीर 
उसे नींद से जगाओ 
उसके बल का प्रतिरूप 
वो आइना  उसे दिखाओ

कि  वो अपने चेहरे को भी 
भूल गया है 
वो बूढ़ा नहीं है 
बूढी  सोच में
सब कुछ कबूल गया है 

सताया है अपनों ने 
अपना मुख मोड़ लिया है 
 नवयुवक भारत के जागो 
ज़ज्बातों ने उसको तोड़ दिया है 

सन सत्तावन में अंग्रेजों से 
लोहा लेता वो बूढ़ा था 
आज ज़ज्बातों से  है घायल
उस बूढ़े को तू राह दिखा 

उसे दिखाओ उसकी ताक़त 
और भरो  ज़ज्बात हिम्मत का  
समझाओ उसे ये भारत है 
यहाँ रिवाज़ है तेरे इज्ज़त का 

कुछ रिश्तों के टूटने से 
तू क्यूँ हारा जाता है 
भारतवासी तेरे बेटे हैं 
क्यूँ तू पछताता है 

माँ भारती तेरी माँ है 
शिव सा तुम धीर  धरो 
विचलित न हो ज़ज्बातों से 
तू अपना मान न खो

प्रकृति से प्रेम करो 
यदि कोई न प्रेम करे 
आवाज़ सुनो पंछियों की 
गर कोई न तुझसे बोले 

तेरे साथ है जब भारत 
तो तू क्यों हार गया है 
भूल गए जो रिश्ते तुझको 
तू खुद को क्यों मार गया 

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