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Tuesday 26 April 2011

मन की सुनोगे तो --------अपनी पहचान को कायम रखोगे

मन की सुनोगे तो --------अपनी पहचान को कायम रखोगे

असहाय ,बिलकुल असहाय 
प्रतीत    होता  है जब मन  
के पंछी   अतीत  और वर्तमान 
के डालों  पर आते  और जाते  हैं 
विश्वास स्वयं पर तब होता है 
जब मन निश्चल होता है 
बड़ी बड़ी बातें करना 
भी हास्य लगता है 
निश्चल मन को 
क्रुद्ध हो जाना भी 
एक रस घोलती है बेगानों में 
जिनके बस दिल के रिश्ते होते हैं 

पहचान बनती है ,ये आवाज़ ही 
जितना बोलोगे
उतना मन से दूर 
और महफ़िल के रंग
में रंगते  जाओगे 

एक दिन याद फिर आएगी महफ़िल 
तभी जब उस महफ़िल में तुम 
मन को भी भूल जाओगे 
पर मन की सुनोगे तो वो
महफ़िल तुम्हे याद करेगी 
और हर  परिवेश में तुम 
अपनी पहचान को कायम रखोगे

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