सूर्य है अकेला
वृक्षों को देता है जीवन
ग्रीष्म ऋतू में जलाता है
हर प्राणियों को
त्रस्त होते हैं जन जन
पर वृक्षों के छाओं तले
वो जीवन पाते हैं
क्यों सूर्य के परोपकार को
वो भूल जाते हैं
ये सूर्य है एक पिता सदृश
जो धैर्य सिखाते हैं
प्रेमभाव से कर्म करो
क्यों दुर्गुण को वो परखते हैं
झांको अपने अपने मन में
क्यों सदगुण को न समझते हैं
No comments:
Post a Comment