एक कविता माँ के लिए
अब इंतज़ार नहीं करेगी माँ
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अब इंतज़ार नहीं करेगी माँ ..
सपनो से ही सही
ये यथार्थ होगा
चिराग जो जला है अन्यास
वो कल स्वयं ही चरितार्थ होगा
जब मैं नहीं था तो सपने भी
उसने ही बनायीं थी
सपनो के साथ आज हूँ चला
शब्द के ढालों से हूँ ढला
इस रण में जो कुदरत खेलेगी मुझसे
अपने सपनो के कटार और शब्दों के ढाल
से उससे मुकाबला मैं कर लूँगा
हार भी गया तो
एक निशान छोड़ चलूँगा कुछ पन्नो पर
कुदरत मुस्कराएगी देख कर मेरी हार
और मेरी माँ मुस्कराएगी देख कर मेरी जीत
अब इंतज़ार नहीं करेगी माँ
भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteवाह! सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबधाई...
सन्देश देती हुई भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteaap sab ka bahut aabhaari hoon
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