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Tuesday 26 April 2011

फिर से लानी आज़ादी है

फिर से लानी आज़ादी है

गरीबी रूकती नहीं भाई
जानलेवा है ये महंगाई

गंगा भी अब हुई मैली
हर तरफ गन्दगी फैली

खुनी मंत्री बनता है
सांसत में अब जनता है

कालाबाजारियों का राज़ है
गोदाम में सरता अनाज है

भ्रूण हत्या माफ़ है
ये कैसा इन्साफ है

हर तरफ हड़ताल है
जनता यहाँ बेहाल है

रिश्वतखोर नहीं रुकते हैं
पुलिस यहाँ नहीं सुनते हैं

है दहेज़ ने डाका डाला
भ्रस्टाचार का बोलबाला

भुखमरी से लोग मरते हैं
नेता बस वोट बैंक भरते हैं

अन्धकार में है जनता
बिजली का है नहीं पता

सड़क यहाँ बदहाल है
ठेकेदार मालामाल हैं

होती पानी की बर्बादी है
फिर काहे की आज़ादी है

बचपन गया मजदूरी में
जीने की मजबूरी में

शिक्षा हो गयी है धंधा
पढना-लिखना है फंदा

देश में फैली बेरोज़गारी है
कैसी ये लाचारी है

अपराधी करते कत्लो-आम है
इंसानियत अब बदनाम है

नक्सलवाद ने सर उठाया है
मासूमों को दहलाया है

हुआ गरीब बेसहारा है
क्षेत्रवाद का मारा है

आतंकियों ने सेंध लगाई है
वीरों ने जान गवाई है

जातिपात का राग है आरक्षण की आग है

मंदिर मस्जिद में घमासान है
शर्मशार यहाँ राम है

घूसखोरों की सरकार है
ये ईमान की हार है

मुश्किल में किसान है
झूठे वादों से परेशान है

रोके नहीं रुकती आवादी है
फिर काहे की आज़ादी है

अगर मनाते हो तुम आज जश्न
फिर कर लो आज तुम एक प्रण

जात-पात को ठुकराओगे
भ्रस्टाचार को जड़ से मिटाओगे

कलम को तुम्हे अपनाना है
जन-जन को शिक्षित बनाना है

आतंकवाद को गर मिटाना है
तुम्हे मिलकर कदम उठाना है

ना लड़ोगे धर्म के नाम पे तुम
करोगे राम को बदनाम ना तुम

दहेज़ का ना नाम हो
ना नारी अब नीलाम हो

रिश्वतखोरों को सबक सिखाना है
उन्हें जेल की हवा खिलाना है

भूखा ना सोये कोई यहाँ
मासूम ना रोये कोई यहाँ

वीरों को मिले सम्मान
भारत बने फिर से महान

आज आज़ादी के मेले पर
ये बात तुम्हे समझादी है

अगर जश्न मनाते हो
तो फिर से लानी आज़ादी है

तो फिर से लानी आज़ादी है

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