ये आगमन है वसंत का
शीत ऋतू ने प्रस्थान किया
पुष्पों से आह्लादित हैं उपवन
भवरों ने भी मान दिया
तपन नहीं है ग्रीष्म सी अब तो
न शीत ऋतू की ठिठुरन है
रौद्र रूप न लाया वर्षा का
इसने सबको जीवनदान दिया
मंद मंद ,शीतल शीतल
कलरव कर कर के वृक्षों पर
पंछियों ने सम्मान किया
कोयल ने भी कूक सुनाई
नदियाँ कलकल बहती है
सूर्य की किरणों ने आँगन में
दिव्यता का आह्वान किया
पिली पिली सरसों की फलियाँ
सुंदर सूर्यमुखी पुष्प खिले हैं
धरा बनी है स्वर्गमय अब
सखियों ने प्रीतम को याद किया
विगत दिनों थे सब सकुचाये
ठण्ड के मारे थे घबराए
किन्तु इस पावन ऋतू ने
नव शक्ति का संचार किया
अलौकिक है वसंत ऋतू
सौंदर्य रस से भरा हुआ
ऋतुराज बन इसने अब
सुर -संगीत का विधान किया
इसकी महिमा है अपरमपार
माँ शारदे भी देती हैं आशीष
सुर विद्या के वीणा से रच
माँ ने अज्ञान का निराकार किया
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ऐसा ही ये ऋतू है मित्रों
तमोगुण को हरता है
संगीत सृजन कर कर के ये
मन प्रफुल्लित करता है
एक अध्यात्मिक ,विहंगम छटा है
आत्म -तृप्ति मिल जाती है
जगती का ये अद्धभुत रूप
सर्व जन को संतुष्टि दिलाती है
तो हम इसका गुणगान करें
प्रकृति का सम्मान करें
विद्यावान बने हम मित्रों
और विद्या का ही दान करें
और विद्या का ही दान करें ....
तो हम इसका गुणगान करें
प्रकृति का सम्मान करें
विद्यावान बने हम मित्रों
और विद्या का ही दान करें
और विद्या का ही दान करें ....
(वसंत ऋतू एक संगीतमय ,आध्यामिकता से भरपूर और मन को शीतलता प्रदान करने वाला ऋतू है .....
असतो माँ सद्गमय ...
तमसो माँ ज्योतिर्गमय ......
मृत्योर माँ अमृतं गमय )
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