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Tuesday 26 April 2011

ग्रीष्म ऋतू को नमन

ग्रीष्म ऋतू को नमन

ग्रीष्म ऋतू को नमन 
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ग्रीष्म ऋतू का
हो गया है आगमन
मंज़र लग गए है 
अब आम के वृक्षों पर
आकृष्ट करते है 
सबको झूम झूम झूम के 
सब दे रहे
इस प्राकृतिक सौन्दर्य को
अपना नमन 
अपना नमन

पक्षी भौरें उड़ रहे है
मस्ती में
ये स्वंतंत्र उड़ान है  
उस ईश की है  ये कृपा  
दे रहे हैं  वो दस्तक
अपने सुरीले बोल से 
वृक्षों पर
कर रहे हैं भ्रमण 
हैं भ्रमण 

सूर्य दिव्य्मान है 
और नदियाँ बह रही है
कल कल
चारो और छाई है
एक दिव्यता
आनंद ही आनंद चहू और है
कर रही है 
एक अलोकिक
संगीत का सृजन 
का सृजन 

ये धरा भी प्रस्सन है 
की वृक्ष से 
वे हैं भरे
ये आदित्य रूप
जग का
हर रहा 
सबके अगन
 सबके अगन

कोयल ने अब   
ह्रदय पर
डाला मोह पाश है
बन गयी मनमोहिनी 
कर रही है
माधुर्यता का
हर दिशा में गुंजन
गुंजन

स्वागत कर रहे हैं कोयल की
हो सभी आनद में
आशीष अपनी
कर रहे हैं
हर कूक 
पर अर्पण 
 अर्पण

वर्ष में
एक बार ही 
आता है ये पल मित्रगन
कर लो इससे आत्मसात 
खुद के अंतर्मन को
कर लो
इस दिव्यता को
तुम ग्रहण 
तुम ग्रहण

आज कर लो
इस ग्रीष्म ऋतू के
आगमन पर
अपने अंतर्मन से 
इस सौन्दर्य को
तुम नमन
तुम नमन 

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