तेरे बिन मरना सिख लिया था
तू अमृत लेकर क्यों आई
इस स्वप्नों के निश्चल जगत से
तू क्यों आकर उसे जगाई
मन कोमल था पर शब्द तो थे
जिससे शोले बरसते थे
क्रांति ला सकते थे वो
नवयुवको में साहस भरते थे
मौन रहे पर फिर भी लेखक
मन में बस जाता है
प्रेम गीत भी तो रचकर
वो एक रण में सर्वस्व लुटाता है
तू शक्ति है इस जग में
इसे कोई झुठला न पायेगा
शब्दों में शक्ति है तुझसे
हर कवी इसे दर्शायेगा
प्रकृति भी जीवनदायनी है
धरा भी है जननी
हर रूप में उस शक्ति की ताक़त
समझाएगी एक कवि की लेखनी
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