आया कल शाम वो
एक बीज लेकर उस सोये हुए विश्वास के पास
और
चला गया फिर बीजों को बांटने
साथ में थे उसके खुशियाँ
और खुशियाँ भी
जो देख रहे थे
अपने
और वो उन्हें
पर वो कुछ न बोले चला गया
उस बीज में ही साड़ी खुशियाँ देकर अपनी
और उसका न बोलना
ही खुशियाँ
दे गया
ढल गया मन में एक विश्वास
उस बीज को सींच कर वृक्ष
बनाने का ज़ज्बा
और कुछ पानी लेकर
एक किसान आया
और उस बीज से
वृक्ष बनाने तक उसकी
लालन पोषण की जिम्मेदारी
दे कर लग गया अपने
बैलों के साथ
खुशियाँ ढूंढने लगा मन
उस बीज को पौधा
और फिर वृक्ष बनने
की आस लिए
सूरज की किरणे लेकर
एक सुबह आई
और उसका आना नहीं रुका
वो आती गयी
आज वो बीज
एक पौधा बन चुका है
और वो किसान
आज खुश है
और सुबह आज
बदली बदली सी नज़र आ रही है
सुहानी
कुछ चिड़ियों का भी आना अब
शुरू हो गया है उस पौधे पर
और आज विश्वास फिर से
लौटा है
नए बीजों के साथ
जिसे वो
बांटने अब चला है
और आज विश्वास फिर से
लौटा है
नए बीजों के साथ
जिसे वो
बांटने अब चला है
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