स्वागत

Tuesday 26 April 2011

नया सवेरा

नया सवेरा



आया कल  शाम वो 
एक बीज  लेकर  उस  सोये हुए विश्वास के पास 
और 
चला गया फिर बीजों को बांटने 


साथ में थे उसके खुशियाँ
और  खुशियाँ भी 
जो देख रहे थे
 अपने
और वो उन्हें 
पर वो कुछ न बोले चला गया
उस बीज में ही साड़ी  खुशियाँ देकर अपनी 
और उसका न बोलना
ही खुशियाँ 
दे गया 
ढल गया मन में एक विश्वास 
उस बीज को सींच कर वृक्ष 
बनाने का ज़ज्बा 
और कुछ पानी लेकर 
एक किसान आया 
और  उस बीज से
वृक्ष बनाने तक उसकी 
लालन पोषण की जिम्मेदारी 
दे कर लग गया अपने 
बैलों के साथ 
खुशियाँ ढूंढने लगा मन 
उस बीज को पौधा
और फिर वृक्ष बनने
की आस  लिए  
सूरज की किरणे लेकर 
एक सुबह आई  
और उसका आना नहीं रुका 
वो  आती गयी 


आज वो बीज 
एक पौधा बन चुका है 
और वो किसान 
आज खुश है 
और सुबह आज 
बदली बदली सी नज़र आ रही है 
सुहानी 
कुछ चिड़ियों का भी आना अब
शुरू हो गया है उस पौधे पर




और आज विश्वास फिर से
लौटा है
नए बीजों के साथ
जिसे वो
बांटने अब चला है 

No comments:

Post a Comment