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Tuesday 26 April 2011

मेरा चन्द्रमा तो विलक्षण है

मेरा चन्द्रमा तो विलक्षण है
वो  चकोर है 
तकता है रस्ता चाँद का 
जो ना आ पाएगी कभी मिलने 
फिर भी आवाज़ लगाता है 

बादल उसे समझाते हैं 
उसके रूठे मन को बहलाते हैं 
वो है परियों के शहर की 
तू व्यर्थ का शोर मचाता है 

उसने चाँद को बोल दिया
तेरे लिए दुआएं भेजी थी 
नज़र न लग जाए तुझको 
ये बादल जो तुझे बचाता है 

टिमटिमाते हैं तारे 
अमावस की रात में 
चकोर फिर भी उदास है 
वो चाँद नज़र नहीं आता है 

उसने तारों को बोल दिया 
तू आभूषण मात्र है आकाश का   
मेरा  चन्द्रमा तो विलक्षण है 
जो जग को शीतलता पहुंचाता   है 


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