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Monday 25 April 2011

अगर मन में है तेरे प्रेम भाव ... तो रहे फकीरा दूर सही

तो रहे फकीरा दूर सही....

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बादलों ने की है साजिश

की चांदनी खिलती नहीं

वो सितारों सी सजी राते

वो रात अब दिखती नहीं

न ही पंछी कलरव करते हैं

न भौरें गुनगुनाते हैं

कृतिमता के इस भंवर में

वो ख़ुशी मिलती नहीं

अब वो बहारे कहाँ है

न आती है भीनी खुसबू

इन महल अटारियों में

रौशनी दिखती नहीं

अब कहाँ वो आशियाना

अब कहाँ वो पुरवाई है

चारदीवारियों में जकड़े हैं सारे

अब महफिले सजती नहीं

सब तो पास ही हैं अपने

फिर क्यूँ एक दूरी है

आधुनिकता के इस समर में

ऐसी क्या मजबूरी है

आँखों में शोहरत के सपने

जहन में दौलत का नशा

तुझे इल्म नहीं है फकीरा

की ये ख़ुशी टिकती नहीं

जिस तरह तू दूर है इस चांदनी से,इस पुरवाई से

इन बहारो से,और उन अमराई से

दूर है तू उस तरह ही

अपने उस खुदाई से

पास होते हुए भी तू पराया है

खुद अपनों से

ज़ज्बातों से तू मीलों है दूर

तू खोया है अब किस सपनो में

इतना भी मत खो जा

इस जीवन के समुन्दर में

की अपनों के चेहरे भी

तुझे बेगाने से लगने लगे

कहीं ऐसा न हो

जिसे मान रहा तू सोम सुधा

वो हलाहल बनकर

तुझे ठगने लगे

ये महल अटारी , चका चौंध

सब हैं एक मृग तृष्णा

स्नेह,त्याग से हैं ये परे

इनसे खुशियाँ मिलती नहीं

तू सुन ले अपने दिल की यारों

कब तक खुद को तर्पायेगा

इन झूठी खुशियों के खातीर

तू कब तक दाँव लगाएगा

पास हो कर भी ज़ज्बात नहीं

तो यारों ये कैसा मिलन

अगर मन में है तेरे प्रेम भाव

तो रहे फकीरा दूर सही...

तो रहे फकीरा दूर सही....

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